जीवन के संघर्षों में जीवन समाप्त हो गया पूर्वांचल के राजनीतिक पुरोधा उपेन्द्र दत्त शुक्ल का  

 



 


गोरखपुर । उन्हें क्या पता था कि गाँव की मिट्टी से निकल कर शीर्ष स्तर की राजनीति में कदम रखने के बाद भी उन्हें संघर्षों में ही रहना पड़ेगा ।गोरखपुर के दक्षिणांचल में खजनी के पास सरया तिवारी गाँव  में पिता कर्म दत्त शुक्ल के तीसरे सन्तान के रूप में सन 1960 में  जन्मे उपेन्द्र दत्त शुक्ल जब 5 वर्ष के थे तभी पिता की साया उनके सिर से हट गयी थी ।गांव में बचपन से पढ़ाई करने के बाद गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक डिग्री लेने के पूर्व से ही जनसंघ व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दामन पकड़ लिया था।संसाधनों के अभाव व आर्थिक स्थिति खराब होने के बाद भी वे समाज व राष्ट्र के लिए कुछ करने की ललक उनके माथे पर पसीनों की बूदों की चमक से साफ रूप में परिलक्षित होती थी ।उपेन्द्र दत्त के दोनों बड़े भाई जी पी शुक्ल व विश्वनाथ शुक्ल व माँ का भी साथ उनके संघर्षों में बहुत दिन नहीं रह सका वे भी लोग चल बसे।भरे पूरे परिवार में सबको लेकर चलने में अपने दो पुत्र अरविन्द शुक्ल अमित शुक्ल बेटी विंध्यवासिनी व पत्नी सुभावती के लिए घर तक निर्माण नहीं करा सके ।गोरखपुर में अल्हदादपुर में दो कमरों विगत तीन दशकों से गुजर करते रहे ।उसी मुस्कान के साथ उनके चेहरे पर कभी उदासी नहीं दिखी ।भाजपा में कार्यकर्ताओं के लिए कई बार पुलिस की लाठी व जेल तक यात्रा का इतिहास रहा है ।पार्टी में वे कार्यकर्ताओं को सर्वोपरि मानते थे ।चुनावी राजनीति में तीन बार चुनाव लड़ने के बाद भी उनके संघर्षों में यहां भी भाग्य ने साथ नहीं दिया ।पराजय होने के बाद भी चेहरे पर वही मुस्कान संघर्ष की झलक देखने को मिलती थी।पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा प्रणाम अभिवादन को वे गले लगाकर स्वीकार करते थे ।विपक्षी सरकार आने के बाद भी वे अपने व्यक्तित्व से हर दल के सभी नेताओं के लिए अच्छा व्यवहार करने के लिए भी जाने जाते थे।


छोटी बिटिया विन्ध्यवासिनी जो दिल्ली में अपने पति के साथ रहती है उसके आने के बाद उनका अंतिम संस्कार कल 10 बजे मुक्ति पथ बड़हलगंज में सम्पन्न होगा ।

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