शासनादेश की मार,कर्मचारी लाचार


गोरखपुर   


विद्युत  विभाग के कर्मचारी  अब भुखमरी के कगार पर है।निगम के आदेश के बावजूद इनको लॉक- डाउन की स्थिति में जहां तहां फँस जाने की वजह से तथा उसी स्थान पर एकांतवास करने के कारण विभाग द्वारा उन्हें अनुपस्थित मानकर उनके वेतन का भुगतान नही किया जा रहा।
        ऐसे कर्मचारी जो जिले के  बाहर के हैं उनको लॉकडाउन में मुख्यालय से बाहर ही रह जाना पड़ा है अथवा वो वही फंस गए है उनको अब भारी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि कर्मचारियों का कहना है कि वो 'वर्क फ्रॉम होम' के अंतर्गत अपने कार्यों को सम्पादित करते रहे हैं।उनका कहना है कि ऐसे कर्मचारी एवम अधिकारी जिनको कार्यालय नही बुला जा रहा है,अथवा जो 'पृथक प्रवास' में है उनको भी इस अवधि मे 'ऑनड्यूटी' मानते हुए वेतन दिए जाने के आदेश निर्गत किये गए थे। किंतु बनारस विद्युत निगम में कई कर्मचारियों का वेतन नहीं दिया जा रहा है।सिर्फ इतना ही नहीं विभाग द्वारा इन कर्मचारियों से छुट्टी स्वीकृत कराने हेतु मौखिक दबाव बनाया जा रहा है।
    कर्मचारियों का कहना है कि सिर्फ बनारस ही नहीं आजमगढ़,बस्ती,और गोरखपुर के भी कई कार्यालयों जैसे नगरीय वितरण खंड,नगरीय वितरण क्षेत्र,मुख्य लेखाधिकारी कार्यालय सहित तमाम कार्यालयों के कर्मचारियों पर वेतन के अभाव में संकट के बादल मंडरा रहे हैं।कुछ कर्मचारियों की स्थिति अत्यंत दयनीय है।इस अवधि में उनके सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है।उनका कहना है कि शासनादेश के बावजूद वेतन न देकर अवकाश के लिए दबाव बनाना हमारे समक्ष अत्यंत विषम परिस्थिति खड़ा कर चुका है।कर्मचारी डर और असमंजस के अतिरिक्त अपने रोजी-रोटी के ऊपर आये इस संकट का सामना करने में खुद को बहुत अक्षम पा रहे हैं।
इस संदर्भ में मुख्य अभियंता देवेंद्र सिंह का कहना है कि बिना अनुमति के मुख्यालय छोड़ने वाले कर्मचारियों के लिए 'नो वर्क-नो पे' का प्रावधान पहले से ही है।कर्मचारी अगर मुख्यालय पर होते तब तो उनको 'वर्क फ्रॉम होम' के लिए कहा जाता।जिन्होंने बिना सूचना के मुख्यालय छोड़ा होगा उनके सामने ही ऐसी स्थिति होगी।
     बहरहाल शासनादेश, लॉकडाउन, कार्यस्थल,और कर्तव्यों के भंवरजाल में फंसे कर्मचारियों के समक्ष अब जीवनयापन का संकट उत्पन्न हो गया है।उनको अपने अनिश्चित भविष्य की चिंता सताए जा रही है।


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