तराई से पहाड़ी तक की आवाज हम भारत है


 


 


सुरेश चौधरी


गोरखपुर। इतिहास परिदृश्य से नहीं परिप्रेक्ष्य से बनाये जाते हैं।कुछ ऐसा ही करने का जुनून लिए एक बेहद संस्कारी और सभ्रांत व्यापारी परिवार का लड़का जब अपने परिवार के परंपरागत और स्थापित मान्यताओं से अलग करने की सोचता है तो परिणाम इतने अप्रत्याशित और सुखद होंगे खुद उसे भी इसका यकीन नही होता। पीढ़ियों से परिवार में तमाम तरह के व्यापारिक उद्यम किये जाते रहे,पीढ़ी दर पीढ़ी समय की मांग के अनुसार उद्यमों में ढांचागत परिवर्तन अवश्य हुए,मगर उनके मूल में व्यवसाय ही रहा।ऐसे रूढ़िवादी परिवार के संस्कारों के रक्त अपनी शिराओं में लिए जब इस बच्चे ने कुछ अलग करने की सोची तब उसके मन मे परिवार की स्वीकृति मिलने का संशय अवश्य था। मगर रचनात्मक पृष्ठभूमि से आई माता की प्रेरणा और स्वीकृति ने उसे सिर्फ संबल ही नही दिया बल्कि उसकी कला को तराशने का सामर्थ्य भी दे दिया।पारिवारिक स्वीकृति के बाद तो मानो हौसलों को पंख मिल गए,फिर उसके बाद जो हुआ वो एक दिवास्वप्न के साकार होने जैसा था।
जी हां हम बात कर रहे हैं विशुद्ध व्यापारिक माहौल में पले बढ़े हर्ष गुप्ता की।महाराजगंज जिले के एक छोटे से कस्बे घुघली के निवासी हैं। खाँटी व्यापारी परिवार के तीसरी पीढ़ी के उत्तराधिकारी हर्ष अपने चार चाचा-चाची और दर्जन भर भाई बहनों के स्नेह से अभिसिंचित हैं।हर्ष के पिता कनक बिहारी घुघली कस्बे के प्रतिष्ठित कपड़ा व्यवसायी हैं जबकि उनकी माँ संगीता कुशल गृहणी।हर्ष की प्रारंभिक शिक्षा घुघली,जूनियर की महराजगंज और माध्यमिक की गोरखपुर में हुई।रचनात्मक,गुणी और संस्कारी माता और क्रिकेटर पिता की संतान हर्ष बचपन से ही मेधावी था और हमेशा से ही कुछ अलग करने का जुनून रखता था।
उसके इस जुनून को पंख तब मिला जब वो उच्च शिक्षा के लिए प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंचा।वहाँ पहुंचते ही मानो उसकी रचनात्मकता के लिए राजधानी पलकें पसारे बैठी थी।अपने ही जैसे कुछ और उत्साही युवाओं लखनऊ के माणिक मिश्रा,निधि अवस्थी और उत्तराखंड के अनुराग सिंह तथा स्मोक लाइट स्टूडियो का साथ मिलते ही उसके अंदर के कलाकार ने मानो अपनी मंज़िल के सफर का आगाज़ कर दिया।शुरुआती दिनों में ही मिले साथियों के सहयोग से यूट्यूब चैनल सरगम ने कब फर्श से अर्श तक के सफर का आरम्भ कर दिया पता ही नहीं चला।
अब जब हर्ष और उसके साथियों द्वारा प्रस्तुत  सरगम का एक गीत लोगों की जुबान पर चढ़ कर गांव कस्बों की आवाज़ से आवाज़ मिलाकर गया रहा है कि हम हैं हिंदुस्तान।तब लगता है कि पहाड़ी से लेकर सुदूर तराई तक के गुमनाम युवाओं की आवाज़ को सिर्फ पहचान ही नहीं प्रसिद्धि भी बुला रही है।जय हिंद कहकर।।


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