हम हैं लोकल

 


भावनाओं की भव्यता को आयुष्मान करता:आयुष


गोरखपुर।



"मत पूछ क्या जादू चला मुझपे तेरी तस्वीर का
अब हर जुबान पर है फसाना बस तेरी तासीर का
नज़रें, मनभावन 'नज़रिये' से करें अब गुफ़्तगू
धीरे धीरे फ़लसफ़ा होता बयां तामीर का।"


संगतराश का काम पत्थरों में जान डालना होता है। चित्रकार अपनी कूची से चित्रों को सजीव करता है।लेखक अपनी लेखनी से अदृश्य को समक्ष उपस्थित कर देता है।
उपरोक्त सारी बातों में बहुधा एक चीज़ सर्वमान्य है,वो ये की जान डालने, सजीव करने अथवा अदृश्य को भी समक्ष प्रस्तुत कर देने की ये विद्या उम्र के एक ऐसे मुकाम पर आती है जब व्यक्ति समझदार,परिपक्व अथवा प्रौढ़ व्यक्तित्व में परिवर्तित हो चुका होता है।
लेकिन यदि जीवन की अबूझ गहराइयों को किशोर वय में में ही वो परिपक्वता दिखनी लगे तो वह बालक साधारण नहीं विशिष्ट हो जाता है।उम्र के उस पड़ाव पर,जब बालक और उसके अभिभावक दोनो ही एक मर्यादित खुलेपन से संवाद करने की स्थिति में होते हुए भी परस्पर संवाद करने में असहज महसूस करते हों,उस समय यदि किसी बढ़ते हुए बच्चे के अंदर जीवन की अदृश्य गहराइयों को देखने समझने का ज्ञान आ जाये तो आज कल के माहौल में यह उस बच्चे के अभिभावकों,परिवार,और समाज सबके लिए दैवीय चमत्कार सदृश ही है।
लगभग हम सभी सोते-जागते,उठते- बैठते,आते-जाते प्रत्येक पल जीवन मे बहुत कुछ देखते समझते हैं।कुछ बातें अथवा दृश्य याद भी रह जाते हैं लंबे समय तक।लेकिन हम ये नहीं जान पाते कि हमें कोई दृश्य,स्थान,अथवा बात याद क्यों हो जाते है?अगर हम विचार भी करें तो बस ये निष्कर्ष निकाल पाते हैं कि हमें वो दृश्य अथवा घटना कहीं न कहीं दिल को छूकर गई लगती है,शायद यही वजह होती है जिससे हमें वो चीज़ें लंबे समय तक विस्मृत नहीं होती।
   लेकिन ये 'छू' जाना कोई साधारण शब्द नही है।कोई चित्र,मूर्ति,कला, प्रकृति के दृश्य, रंग अथवा वातावरण हमें और हमारे मन को कैसे प्रभावित कर जाता है यही उस कला अथवा चित्र के रचनाकार की विशेषता को परिभाषित करने के लिए पर्याप्त है।जाहिर है कि हमको और हमारे मन को 'छू'जाने लायक बनाने में उसकी दृष्टि, विचार,और कल्पना का सुंदर सामंजस्य तो है ही,साथ ही इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि उसका दृष्टिकोण हमसे कहीं ज्यादा उन्नत और गहराई लिए हुए है।तभी तो कोई रचना हमारी स्मृतियों में घर कर जाती है।
लेकिन इससे भी कहीं ज्यादा गहनता उस दृश्य को दुबारा देखने में है, जिसमे व्यक्ति की अपनी कोई कलाकारी नही होती। हम सभी वही चीज़ देखते है जो प्रकृति ने वैसे ही छोड़ रखी है बिना किसी छेड़छाड़ के।जैसे गीली मिट्टी पर रेंगते हुए कीड़े के पैरों के निशान,धूल से अँटी आलमारी से गुजरी हुई चींटियों से बनी आड़ी तिरछी रेखाएं,किसी पेड़ की शाखा पर बनाये गये मकड़ी के जालों पर मोतियों जैसे टँकी ओस की बूंदें,या फिर पीले गुलाब पर बैठी काली तितली के फैले परों पर बनी आकृतियों का गुलदस्ता,और चिमनी से निकलती धुएं की लकीर को कुछ दूर तक जाकर अनंत आकाश में विलीन होकर जीवन की क्षणभंगुरता का संदेश देने वाली हिलती धुंए की लकीर..
ऐसा नही है की हम इस तरह के दृश्यों से दो-चार नही होते,लेकिन क्षणभंगुर जीवन को दर्शाने वाले इस दृष्टिकोण का क्या करें, जो गहन समीक्षा और परिपक्व शोध से ही पाना संभव है।
  आज 'हम हैं लोकल' में हम एक ऐसी ही प्रतिभा के बारे में बात कर रहे हैं।जिसकी प्रतिभा देखकर उसकी समझ और परिपक्वता को सलाम करने पर मजबूर हो जाना पड़ेगा।सोलह वर्ष की अवस्था बहुत संवेदनशील होती है।इस समय बालक जवान होने की दिशा में अग्रसर होता है दिल और दिमाग मे तमाम अनछुई स्मृतियाँ आकार लेने लगती हैं।आधुनिक समय मे सूचना क्रान्ति के इस दौर में आम अभिभावकों को इस समय ये फिक्र होने लगती है कि कहीं कोई छोटी सी चूक उनके लिए बड़ी हूक न साबित हो जाये।जवान होते बच्चोँ के अभिभावक तो उन बच्चों से भी ज्यादा फूंक कर अपने कदम रखते है।वैसे भी उम्र का ये पड़ाव पूरे जीवनकाल का सबसे निर्णायक क्षण होता है।जब बालक व्यक्ति और व्यक्तित्व बनने के सँकरे रास्ते पर अपना कदम बढ़ता है।वो भी तब जब उसे अभिभावक उसे उंगली छोड़ के चलने को कहते है।
   ऐसे में उन अभिभावकों के लिए अपना मस्तक गर्व से ऊंचा करने की अनुभूति होती है जब उनके बच्चे सही रास्ते पर चलकर सोलह साल की अवस्था मे जवान नहीं बल्कि 'बड़े' बन जाते हैं कद में नहीं समझ और परिपक्वता में।
   आज हम उम्र के सोलहवें पायदान पर खड़े एक जवान नहीं,बड़े बालक की बात कर रहे हैं जिसने 'कैमरे' के 'लेंस' को अपनी तूलिका और दृष्टि को हथियार बनाकर पूरी कायनात को ही 'कैनवास' बना देने की ज़िद ठान ली है।अपनी कल्पनाओं की 'रास' को कैमरे में बांध कर अपने ही पंजों में समेटकर कुम्हार की तरह मनचाहा आकार और व्यापक दृष्टिकोण देने का हुनर इस नौजवान को देश से ज्यादा विदेशों में उसको लोकप्रिय बना रहा है।उसके द्वारा खींचे गए चित्रों को विदेशी पत्र पत्रिकाओं की प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है।उसकी समझ और गहन समीक्षा की तारीफ के कसीदे जाने माने फोटोग्राफर पढ़ रहे हैं।उसके इस प्रदर्शन नेआस्ट्रेलिया तक को अपना मुरीद बना लिया है।इकाई प्रदर्शन पर उसको एक न्यूज कंपनी की तरफ से जॉब का ऑफर आ चुका है।ऐसे में जब बच्चे अपने कैरियर को लेकर असमंजस की स्थिति में होते है इस बच्चे ने अपने इस शुरुआती शौक को जुनून में तब्दील कर एक स्थायी और रोमांचक मुकाम दे दिया है।यह उपलब्धी पूत के पाँव पालने में ही दिख जाने की अनुभूति से कम नही।
   हम बात कर रहे हैं एक सांस्कारिक अनुशासन पसंद और सामूहिकता को प्रश्रय देने वाले तथा पारिवारिक प्रेम  और नैतिक मूल्यों को धरोहर के रूप में संजोकर खुशबू की तरह बिखराने वाले बेहद सम्मानित और शिक्षित परिवार की तीसरी पीढ़ी के उदीयमान नक्षत्र की।जिसका नाम है आयुष कृष्ण त्रिपाठी।पूर्वांचल के लोगों को 'कृष्ण' घराने के मतलब समझने की जरूरत नही।खासतौर से महराजगंज,गोरखपुर ,सिद्धार्थनगर,देवरिया,कुशीनगर और इसके समीपवर्ती क्षेत्रों में यह घराना ज्ञान,संस्कार, सामूहिकता,विद्वता,और मेधा का पैमाना या मानक है।इसी 'कृष्ण' घराने के महराजगंज जनपद के परतावल बाजार के जमींदार,बेहद सम्मानित शिक्षित,और शालीन व्यक्तित्व की विराटमूर्ति पूर्व प्राचार्य स्व. सुशील कृष्ण त्रिपाठी जी के परिवार की तीसरी पीढ़ी के नई कोपलों में से एक है आयुष।आयुष कृष्ण त्रिपाठी,पूज्य प्राचार्य जी के चारों मेधावी और संस्कारी पुत्रों में से सबसे छोटे सुपुत्र और जनसामान्य में सर्वसुलभ और सर्वमान्य,बेहद प्रखर वक्ता,जिनकी भाषण शैली और वाकपटुता तथा हाज़िर जवाबी का मुरीद लेखक खुद है।पनियरा विधानसभा के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में पहचान बनाने वाले और अपने स्वभाव और मृदुभाषा से सबको अपना बना लेने वाले हरेंद्र कृष्ण त्रिपाठी के पुत्र हैं।
परतावल स्थित सावित्री पब्लिक स्कूल में दसवीं के छात्र (परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे) आयुष को दो साल पहले मोबाइल से ध्यान हटाकर कैमरे की तरफ ध्यान दिलाने वाले अभिभावकों को भी पता नही था कि उन्होंने अपने बच्चे के हाथ मे बिल्कुल सही समय पर अनजाने में ही सही एक जादू की छड़ी दे दी है।जो उसे इतने कम समय मे ही देश विदेशों तक मे सबका चहेता बना देगी।
दो साल के अंदर ही करियर पर फोकस करने की उम्र में 'लेंस' पर फोकस करने वाले इस बच्चे ने इस 'फोकस' की वजह से कब अपना करियर बना लिया और इन पर फ़ोकस करते हुए ही वो इतना 'फेमस' कब हो गया? इसका यकीन आयुष को ही नही उसके अभिभावकों तक को एक बारगी नहीं हो पाता।
आज अपनी फोटोग्राफी की वजह फोटो की समझ और लेंस की व्याख्या और समयानुकूल प्रयोग की विशद विश्लेषण की दृष्टि की वजह से ही आयुष को देश विदेश की जानी मानी पत्र पत्रिकाओं में सम्मानित स्थान मिल चुका है।
         बनारस में हुए एक अंतरराष्ट्रीय छायाचित्र प्रतियोगिता में विदेशों तक के फोटोग्राफर उसकी समझ और कला की मुक्तकंठ से सराहना कर चुके हैं।जानी मानी इलेक्ट्रॉनिक कंपनी और अपने कैमरों की वजह से विश्व भर के बाजारों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाली कंपनी सोनी के ब्रांड एंबेसडर गणेश बंगल,तथा वन प्लस कैमरा के ब्रांड एंबेसडर योगेश मन्हास की तरफ से भी आयुष को सराहना मिल चुकी है।
मणिकर्णिका,अंधाधुन,बधाई हो, डारकेस्ट डेज जैसी फिल्मों के विजुअल डायरेक्टर डैनी विलसन ने भी आयुष की प्रतिभा का लोहा माना है।राष्ट्रीय छायाचित्र प्रदर्शनी में राजधानी सहित तमाम जगहों पर आयुष के चित्रों को पुरस्कार, सराहना,प्रशस्ति पत्र,और ढेरों प्रमाणपत्र मिल चुके हैं।इसी उम्र में आयुष को 'द बफर स्टॉक' न्यूज कम्पनी से जॉब का ऑफर मिल गया है।आयुष के चित्र वर्ल्ड वंडरफुल फोटोग्राफी 2020 के लिए भी चयनित हुए हैं।
राष्ट्र चिन्ह से बात करते हुए आयुष ने कहा कि उसकी शौक को समझ बनाने में उसके अभिभावकों का सबसे बड़ा योगदान है।जहां एक तरफ पापा से बड़े तीन ताऊजी लोगों का कठोर अनुशासन और सकारात्मक प्रेरणा इस पथ की तरफ ले जाने में मील का पत्थर साबित हुई।वही ताई जी लोगो का स्नेह, चित्रों की संवेदना और भाव को समझने तथा समझाने के लिए वरदान सिद्ध हुआ।पापा और मम्मी के दोस्ताना रवैये ने सोच को विस्तृत और कल्पनाओं को आकाश भर आकार देने की सामर्थ्य दी, तो भाइयों और बहनों के स्नेह ने उत्साह का संचार किया।भविष्य की योजना पर बात करते हुए आयुष ने बताया कि  कॉलेज की शिक्षा के उपरांत आस्ट्रेलिया जाकर प्रोफेशनल फोटोग्राफी कोर्स करके विशेषज्ञता हासिल कर के इसमे ही कैरियर बनाने की योजना है।
     ऐसे में अपने बालक की सफलता से आह्लादित मुखर और प्रखर पिता हरेंद्र कृष्ण त्रिपाठी की जुबान से सहसा ये बात निकल कर हवा में तैर जाती है कि शुक्र है कि हमने समय रहते बच्चे की प्रतिभा को 'हैक' होने से बचा लिया।इसकी वजह से मेरी पहंचान नेता से इतर एक विशेष अभिभावक की है,अच्छा लगता है।