मौत के सौदागर तबलीगियों पर किस-किसकी नजरें नरम




आर.के. सिन्हा


देश को कोरोना वायरस के रास्ते मौत के मुंह में झोंकने की कथित रूप से साजिश  करने वाले तबलीगी जमात का अगर आज देश में इतना लंबा-चौड़ा जाल बिछ गया तो इसके पीछे बहुत से सियासी नेताओं और सरकारी अफसरों का भी हाथ अवश्य ही रहा है। तबलीगी जमात तो कतई विशुद्ध धार्मिक संगठन नहीं है।


 अगर तबतीगी जमात को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है, तो इसकी ठोस वजहें भी हैं। वर्ना इससे किसी की भी कोई निजी खुंदक क्यों होगी? एक मिनट के लिए तबलीगी जमात की हालिया हरकत की बात नहीं करते, जिसके कारण सारे देश में कोरोना वायरस के रोगियों का आंकड़ा अचानक से बढ़ गया है। उनमें से अनेकों  की मौतें भी हो चुकी है। ये सब बेशक दुखद भी है और शर्मनाक भी।


पर एक सवाल पूछने का मन कर रहा है कि राजधानी के अति महत्वपूर्ण इलाके निजामुद्दीन में तबलीगी जमात का मरकज यानी मुख्य़ालय बनने दिया किसने?  अगर आपने इस मरकज की इमारत को देखा होगा तो आप खुद कहेंगे कि ये तो मेन रोड से भी आगे बढ़ी चली जा रही है। यह बस्ती हज़रत निज़ामुद्दीन में लगभग दो हजार वर्ग मीटर के प्लॉट पर खड़ी है। इसमें दो बेसमेंट, ग्राउंड फ्लोर के अतिरिक्त छह ऊपरी मंजिलें भी हैं, जिसकी ऊंचाई 25 मीटर है, जहां हजारों जमात कार्यकर्ताओं के रहने की व्यवस्था होती है, और प्रतिदिन ही हजारों लोगों का आना जाना रहता है। प्रख्यात वकील और मुस्लिम सहर फाउंडेशन के अध्यक्ष श्री मसरूर हसन सिद्दीक़ी कहते हैं, ‘’वर्ष 1992 में मरकज  की ढाई मंज़िल इमारत बनाने का नक्शा दिल्ली नगर निगम से पास हुआ था। मरकज का नहीं एक मदरसे का । “ लेकिन 1995 के आते आते दो बेसमेंट और छह ऊपरी तल के साथ आलीशान इमारत कैसे बन जाती है। कैसे? यह मुमकिन तो हुआ होगा राजनीतिक असर और प्रभाव का इस्तेमाल करके, पुलिस, दिल्ली नगर निगम, दिल्ली फायर सर्विस और लोकल लोगों की मिलीभगत से ही।”
गौर करें कि तबलीगी जमात के मुख्यालय से सटे है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के कई संरक्षित स्मारकें। उनमें चौंसठ खंबा स्मारक भी है। यह 1623–24 के दौरान बनाया गया एक मकबरा है। इसके नाम से ही साफ  "64 स्तंभ" है। इसे, उस समय बनाया गया था जब मुगल सम्राट जहाँगीर ने दिल्ली पर शासन किया था। तो कायदे से एएसआई की तरफ से संरक्षित इस तरह के स्मारक के 100 मीटर में कोई निर्माण कार्य नहीं हो सकता था।  लेकिन फिर भी मरकज की बिल्डिंग बन जाती है। कैसे? जाहिर है कि यह बिना सरकारी अफसरों के भ्रष्टाचार के खड़ी नहीं हो सकती थी। यह भी पता करना होगा कि मरकज के प्रबंधन ने नियमानुसार ए.एस. आई. की अनुमति ली थी कि नहीं। यदि यह अनुमति नहीं ली थी तो ढाई मंजिली इमारत का नक्शा भी कैसा पास हो गया ? 
 क्या सरकारी अफसरों पर आरोप लगाते हुए हम उस दौर की सरकार और राजनेताओं को माफ कर दें जिनके आशीर्वाद से यह बनी। बेशक नहीं। सवाल और भी है। पिछले साल दिल्ली के करोल बाग़ में अर्पित पैलेस होटल में आग लगी थी। उसमें बहुत से लोगों की जानें चली गईं थीं। सारी दिल्ली दहल गई थी उस अग्निकांड से। तब दिल्ली अग्निशमन विभाग ने  राजधानी के सभी होटलों, गेस्ट हाउसों तथा धर्मशालाओं, जहां मुसाफिर रुकते हैं,  का निरीक्षण किया था और आग और आपात स्थिति से निपटने के इंतजाम करने के लिए कहा। उसने ये भी निर्देश दिए कि अनाधिकृत ऊपरी मंज़िल, जो 15 मीटर ऊंचाई से ज़्यादा हैं, को तुरंत हटा लिया जाए।  क्या तबलीगी जमात की मरकज का ऐसा कोई निरीक्षण पुलिस, नगर निगम,दिल्ली फायर डिपार्टमेंट ने किया? यदि किया तो मरकज ने क्या कारवाई की!  इन सवालों के जवाब तो मौलाना साद को देने ही होंगे।
 जहां मरकज की बिल्डिंग है वह रास्ता बहुत ही संकरा है और आग या अन्य आपदा के समय बहुत बड़ी त्रासदी हो सकती है क्योंकि अग्निशमन गाड़ियाँ वहां  मुश्किल  से ही पहुंचेगी ।  इससे चंद  कदमों की दूरी पर हजरत निजामउद्दीन और अमीर खुसरों की दरगाहें और गालिब अकादमी भी हैं। इधर भी हर रोज बहुत से लोग आते-जाते हैं।


 क्यों ना शिफ्ट हो मरकज
इन हालातों में क्या तबलीगी जमात के हेडक्वार्टर को किसी बड़ी खुली जगह शिफ्ट  नहीं कर लेना चाहिए या जहां सब कुछ ठीक तरह से हो, कोई क़ानून की अवहेलना ना हो,और सब सुरक्षित रहें ?चूंकि कोरोना वायरस को फैलाने में तबलीगी जमात की भूमिका साफ नजर आ रही है, इस लिए अब उसके अध्यक्ष मोहम्मद साद से इतनी अपेक्षा तो कोई भी करेगा कि वे खुद सरकार और प्रशासन से कहें कि  वे मरकज की इमारत को कहीं और शिफ्ट करने के लिए तैयार है।  इसका मतलब यह कतई नहीं है कि तबलीगी जमात को उसके अपराध और पाप की सजा न दी जाये । अभी तक जिस जमीं पर मरकज की सात मंजिली इमारत खड़ी है उस जमीं की कोई कागज और पास नक़्शे की कापी भी नहीं मिली है । इससे यह शक अब तेजी से यकीन में बदलता जा रहा है कि मरकज अवैध  सरकारी जमीं पर खड़ी सग गई है ।


 एक बात साफ करना चाहता हूं कि देश में मुसलमानों के बहुत से अन्य संगठन सक्रिय हैं और राष्ट्र निर्माण में अपना ठोस और रचनात्मक योगदान भी दे रहे हैं।  उनमें मुंबई का अंजुमन-ए-इस्लाम और बोहरा मुसलमानों के तमाम संस्थान लखनऊ के कई शिया संगठन शामिल हैं। मुंबई में अंजुमन-ए-इस्लाम के बहुत से स्कूल-कॉलेज हैं।  फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार और दिग्गज क्रिकेटर वासिम जाफर ने अपनी पढाई यहीं से की है । इसी तरह से दिल्ली में यतीम बच्चों को शिक्षा देने और बेहतर नागरिक बनाने के लिए लिए दरियागंज में ‘बच्चों का घर’ नाम की संस्था भी उल्लेखनीय कार्य कर रही है। उसने अपने 100 सालों का सफर भी पूरा कर लिया है। इन जैसे मुस्लिम संगठनों पर तो कभी किसी ने उंगुली नहीं उठाई। तबलीगी जमात इसलिए ही निशाने पर है, क्योंकि, उसकी गतिविधियां संधिग्ध और शर्मनाक रही हैं। ये संगठन मानवता के नाम पर कलंक है।


 बहरहाल, बात ये है कि जब तबलीगी जमात की काली करतूतों का काला स्याह चिट्ठा खुले तो उन राजनेताओं और स्थानीय निकाय के बाबुओं को भी छोड़ा ना जाए जिन्होंने तबलीगी जमात को अपना खुला खेल खेलने की अनुमति दी।  अगर कोई सरकारी बाबू, भले ही वह आज के दिन रिटायर हो गया हो, के खिलाफ ठोस साक्ष्य मिलते हैं तो उसकी पेंशन को रोक दिया जाए। फिर उसके खिलाफ केस चले। वे भी जेल की हवा खायें । इसी तरह से उन राजनेताओं केनाम भी जाहिर होने चाहिए जो तबलीगी जमात को बेशर्मी के साथ संरक्षण देते रहे हैं।


(लेखक वरिष्ठ संपादक एवं स्तंभकार हैं)