आनन्द सिंह 'मनभावन'
हर नवीन आरम्भ में प्रारंभिक कठिनाइयां होती हैं,क्योंकि यदि एक बार मे ही परिणाम संतुष्टिदायक हो,तो परिष्करण की संभावना न्यून हो जाती है।हम इस बार ऑनलाइन शिक्षण के कुछ सकारात्मक पहलू पर बात करते हैं।यद्यपि ये व्यवस्था अपने प्रारंभिक चरण में है,अस्थाई तथा वैकल्पिक है। लेकिन इसने अपने स्थाई और दूरगामी व्यवस्था तथा व्यवहार बनने के संकेत दे दिए हैं।
इसका सबसे बड़ा फायदा तो ये होगा कि बड़े-बड़े बैनर, पोस्टर और होर्डिंग से जिनका प्रचार लोक लुभावन सपने दिखाकर सुनहरे भविष्य को मुट्ठी में कैद कर देने का मंत्र बताने वाले अध्ययन केंद्रों के रूप में प्रदर्शित कर अंधाधुंध धनादोहन होता था वो समारोह स्थलों के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे।कुछ मनीषियों ने तो इस दिशा में दूरदर्शिता दिखाते हुए कदम भी बढ़ा दिए हैं।
विचार कीजिये ऑनलाइन शिक्षण कार्य के स्थाई रूप से व्यवहृत होते ही 'शिक्षा बेचने' वाले 'फ्रेचाइजी' और 'कलेक्शन सेंटर' सीमित होकर सिर्फ 'कलेक्शन काउंटर' तक आ जाएंगे।तब वो शिक्षा का मंदिर कही जाने वाली और गर्वोन्नत मस्तक लिए कुबेर की लंका पर भी अट्टहास करती अट्टालिकाएं या तो धूलधूसरित हो जाएंगी अथवा अपनी आभा की चमक बचाये रखने के लिए आयोजनों,समारोह स्थलों,या रंगमहल के घुँघरू धारण कर लेंगी।
इससे आमजन को शोषण से या तो मुक्ति मिल जाएगी,अथवा व्यर्थ के आवागमन से छुटकारा मिल जाएगा,पठन-पाठन की सामग्री के नाम पर खुद को गिरवी रखकर भी ले आने वाला शोषण बन्द हो जाएगा।इससे दूसरा लाभ ये भी हो सकता है कि रंगमहल बनने की बजाए कुछ अट्टालिकाएं शोध केंद्र या प्रयोगशालाओं के रूप में खुद को परिमार्जित कर लें।
कुछ चीज़ें भविष्य की अंजुलियों में हैं। परिणाम या अंजाम इससे इतर भी हो सकते हैं परंतु यहाँ तक सकारात्मक और एक पक्षीय दृष्टिकोण की सीमित दृष्टि पहुंच पा रही है,दूसरी और नकारात्मक विचारों की पहली खेप फिर सही....।