ऑनलाइन शिक्षा 4 : तकनीकी जटिलताएं

 


 


 



गोरखपुर।


"ऐसा नहीं कि पाँव में छाले नहीं रहे
तकलीफ ये है कि देखने वाले नहीं रहे।"
किसी शायर की नज़्म के इस शेर के साथ अपनी कहानी को आगे लेकर चलते हैं अगले पड़ाव की तरफ।अभी तक हमने ऑनलाइन शिक्षा के विभिन्न पहलुओं और परिदृश्य पर नज़र डाली है।उसी कड़ी में आज हम इसके तकनीकी पक्ष की बात करेंगे।इसमे विशेष ये होगा कि यह पक्ष शिक्षकों की तरफ का होगा। क्योंकि यह एक ऐसा महत्त्वपूर्ण पक्ष है जिसको जाने बिना हमारी जानकारी को पुख्ता जमीन नहीं मिल सकेगी।हम ये नहीं समझ पाएंगे कि शिक्षक और तकनीशियन के बीच के अंतर को हम अपनी नासमझी से कितना कम कर आंक रहे थे।जबकि वास्तविकता इससे कही अधिक बड़ी और विस्तृत है।
इस जानकारी हेतु हमने माध्यमिक स्तर के विभिन्न विद्यालयों में शिक्षण कार्य कर रहे महत्वपूर्ण विषयों के अध्यापकों से बातचीत की।उन्हीं के द्वारा दी गई जानकारियों के आधार पर   विश्लेषण की यह कड़ी तैयार हुई है।इसमें हमने गणित,जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान,भौतिक विज्ञान, कम्प्यूटर साइंस,अर्थशास्त्र,और अंग्रेजी के अध्यापकों से बात की। जो  विभिन्न विद्यालयों में शिक्षण कार्य कर रहे हैं।
सबसे पहले हम बात करेंगे इन विद्यालयों में चल रहे ऑनलाइन कक्षाओं की विभिन्न पद्धतियों पर।कुछ विद्यालय अपने यहाँ वेदांतु, ज़ूम, गूगल,एवम इससे मिलते जुलते तमाम ऑनलाइन शिक्षण पद्धतियों के अप्लिकेशन से अपने यहाँ  पठन-पाठन करवा रहे हैं।इसके अतिरिक्त कुछ विद्यालयों में यूट्यूब से तथा कुछ अध्यापक व्हाट्सएप्प ग्रुप बनाकर भी पढ़ा रहे हैं।कुछ तकनीकी सुविधासम्पन्न विद्यालयो ने अध्यापकों के नंबर अथवा उनके यूट्यूब चैनल को सीधे अपनी स्कूल की वेबसाइटों से लिंक कर दिया है।जिससे विद्यालयों ने अपनी टाईमटेबल के अनुसार विद्यार्थियों को सीधे उनके नम्बर पर टाइमटेबल अथवा लिंक भेजकर अध्यापकों के लेक्चर को लाइव दिखाने अथवा उनके वीडिओ लेक्चर को दिखाने की व्यवस्था बनाई है।इसके अतिरिक्त तमाम अध्यापको ने अपने यूट्यूब चैनल भी बनाये हैं। जिन पर वे विषयवार,कक्षावार और क्रमवार अपने लेक्चर उपलब्ध करवा रहे हैं।अपनी वेबसाइटों बनाकर भी कुछ अध्यापकों ने कक्षाएं लेने की व्यवस्था बनाई है।
खैर ये तो पद्धति और प्रविधियों की बात हुई अब आते है मूल विषय और आंकलन पर।
हम जानते हैं कि भारत मे लगभग सारी मोबाइल कंपनियों ने औसतन 400 रुपये में डेढ़ से दो जी.बी डेटा का प्लान निर्धारित किया है जो महत्तम 28 दिनों के लिए मान्य होता है।ये जान लेना भी आवश्यक है कि इनमें ज्यादार कम्पनियों ने डेढ़ जी.बी डेटा प्रतिदिन निर्धारित किया है।दो जी.बी डेटा में 2048 एम.बी.होते हैं। जब हमने विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों के अध्यापकों से बात की तब ये पता चला कि आधे घंटे की एक क्लास के लिए उन्हें औसतन कम से कम 300 से 400 एम.बी. डेटा ख़र्च करने पड़ते हैं।वो भी तब जब इंटरनेट की गति 1mbps हो जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अनवरत रुप से सम्भव नहीं है।क्योंकि इस समय ज्यादातर कार्य इंटरनेट से होने की वजह से उसकी गति कम हो रही है।हालांकि कंपनियां ऐसे दावों से इनकार करती रही हैं।जबकि यह एक कड़वी सच्चाई है।इसके साथ ही यह भी समझना होगा कि अध्यापक सिर्फ अध्यापक है वो तकनीकी रूप से दक्ष अथवा तकनीकी का इस्तेमाल करने हेतु प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है।कहने का मतलब ये की उसे ऑनलाइन क्लॉस लेने के लिए पहले से प्रशिक्षण नहीं दिया गया है।ध्यान रहे कि इस लेख में अध्यापकों के महत्तम वर्ग को ध्यान में रखा गया है।कुछ लोग अवश्य ऐसे हैं जिनको मोबाइल, लैपटॉप,अथवा ऑनलाइन क्लास लेने का अनुभव और प्रशिक्षण मिला है,परंतु ज्यादातर स्थितियों में उपरोक्त स्थितियां ही प्रभावी हैं।इसमे ही महिला अध्यापकों की संख्या उनकी विवशताएँ, उनकी ज़िम्मेदारियाँ और समय प्रबंधन और सामंजस्य को भी माना जाना चाहिए।
खैर यदि सब कुछ सही है तो आधे घंटे की क्लास के लिए यूट्यूब पर वीडियो डालने के लिए अच्छी स्पीड के इंटरनेट   कनेक्शन पर चालीस मिनट से एक घंटे तक का समय लग रहा है।यह वो आंकड़े हैं जब अध्यापक उस जगह पर हों, जहाँ इंटरनेट और बिजली की पर्याप्त उपलब्धता है।जो अध्यापक/अध्यापिका गाँवों और देहातों में जाकर फंस गए हैं उनकी स्थिति का अंदाज़ सहज ही लगाया जा सकता है।इस तरह से यह समझ लेना कठिन नहीं कि यदि एक अध्यापक को प्रतिदिन न्यूनतम चार क्लास लेनी है तो उसके पास अपनी बाकी जरूरतों के लिए न तो डेटा बचता है,और न ही समय।क्योंकि उसका सारा समय तो अध्ययन सामग्री को छाँटने, उसे सुग्राह्य बनाने,फिर वीडियों तैयार करने फिर निर्धारित समय से पूर्व उसे चेक कर के अपलोड करने में ही व्यतीत हो जा रहा है।शहरों से दूर रहने वाले अध्यापको के दर्द तो और भी बहुत पीड़ादायी है।महिला अध्यापको के साथ दूसरी अन्य समस्याएं भी है।
अब तकनीकि रूप से दक्ष अध्यापकों की बात करते हैं । जिन्होंने वीडियो कम्प्रेस करने,घरों में व्हाइट बोर्ड रखकर क्लास लेने,और पी.डी. एफ. फ़ाइल में मैटेरियल उपलब्ध करने- करवाने का अनुभव लिया है।उनमें से बहुतों के पास किराये के मकान हैं,जिसमे उसे पूरे परिवार के साथ रहना है।ऐसे में उनको अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए घर मे ही रहकर 'आइसोलेट' होना पड़ जा रहा है।क्योंकि घर मे बच्चे,अन्य सदस्यों टी.वी,पारिवारिक जरूरतें,और अन्य तमाम सारी आवश्यकताएं उनको क्लास लेने हेतु वातावरण उपलब्ध नहीं करवा पा रहीं।कभी शोर,कभी किसी के आने-जाने की आवाज़, सब्ज़ी वाला, दूधवाला, अखबार वाला,टी.वी, गाड़ियों की आवाज़ें उसकी एकाग्रता, तारतम्य और विषयवस्तु के निर्धारण में व्यवधान उत्पन्न करती हैं।किसी तरह से वो इन बाधाओं को पार करते हुए अपनी क्लास के वीडियो लेक्चर तैयार भी कर लेते हैं, तो ऐसे में उसे अपलोड की समस्या,और इसमे उसको इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि उसके लेक्चर में इतनी सरलता हो कि विद्यार्थी आसानी से उसे समझ कर ग्रहण कर सके।साथ ही यदि वो उस वीडियों को डाऊनलोड करना चाहे तो उसे ज्यादा डेटा न ख़र्च करना पड़े।और तो और  उसे 'डाउट क्लीयरिंग' सत्र भी चलाने पड़ते हैं जिसमे उनका उत्तरदायित्व तो नही प्रभावित होता परंतु वो अपने समय और अन्य दायित्वों से वंचित हो जाते है।खास तौर पर गणित,विज्ञान,जीव विज्ञान, अर्थशास्त्र जैसे अध्यापकों के साथ यह कठिनाई पेश आ रही है।
ऑनलाइन क्लास हेतु प्रयोग में लाये जा रहे ऍप्लिकेशन,और दूसरी पद्धतियों में सामाजिक असुरक्षा,और डेटा के असुरिक्षत होने की भी शिकायते आ रही हैं।कुछ एप्लिकेशन के लिए स्वयं गृह मंत्रालय ने भी सुरक्षा निर्देश जारी किए है,परंतु इन सबके बावजूद ज्यादातर विद्यालय इनकी धज्जियाँ उड़ाते हुए देखे जा सकते हैं।उनका कहना है कि इस इसके लिए जी.ओ. आ जाने पर ही विचार किया जा सकता है।जबकि कुछ शोध संस्थानों ने स्पष्ट रूप से अपने शोध के आधार पर ये कहा है कि व्यक्तियों की निजी जानकारियां एक रुपये से भी कम की कीमत पर बेची जा रही है, अथवा साझा की जा रही है।ऐसे मे जब व्यक्ति की निजता और लगभग सारी व्यक्तिगत जानकारियां उसे मोबाइल अथवा लैपटॉप में रहती हैं उनकी सुरक्षा का आश्वासन कोई विद्यालय देने को तैयार नहीं।महिला अध्यापको द्वारा इस बात की भी शिकायतें की जा रही हैं कि उनकी ऑनलाइन क्लास के दौरान तमाम अवांछनीय चीजें स्क्रीन पर आती हैं साथ ही भद्दी टिप्पड़ियां,अश्लील चित्र,वीडियों इत्यादि भी शेयर किये जा रहे है जो क्लास के दौरान असमंजस,दुविधापूर्ण,और लज़्ज़ाजनक परिस्थितियों में विद्यार्थियों और अध्यापकों दोनों को खड़ा कर दे रहे हैं।हाल ही में महानगर के ही एक प्रतिष्ठित विद्यालय में इस तरह के एक वाकये का जिक्र करते हुए महिला अध्यापकों ने बताया कि ये तो प्रकाश में आ गई बात है ।परंतु ऐसी स्थितियों से हमे प्रायः रोज ही दो-चार होना पड़ जाता है।
यहाँ एक और बात गौरतलब है कि ऑनलाइन अथवा यूट्यूब पर कक्षाएं लेना तकनीकी रूप से कितना कठिन है यह तो बताया जा चुका,लेकिन व्हाट्सअप पर तो एक और स्थिति है कि यह पर हम छः से आठ लोगों को जोड़ सकते हैं परंतु 16 एम.बी से अधिक का वीडियो नहीं डाल सकते।
कुल मिलाकर ऐसे अध्यापकों की संख्या ही बहुतायत में है जो तकनीकी रूप से दक्ष नहीं,उनके पास घरों से कक्षाऐं चलाने हेतु पर्याप्त संसाधन, और एकांत नहीं,ये सब कुछ उपलब्ध भी हो जाये तो बिजली और इंटरनेट की सुचारू और अनवरत उपलब्धता नहीं ,और इन सबमे सबसे महत्वपूर्ण यथासमय पाठ्यसामग्री उपलब्ध करवा देने का दबाव अत्यंत ही दुष्कर कार्य है।
अध्यापको का कहना है की हम पढ़ाने हेतु प्रशिक्षित हैं तकनीकी रूप से इतने प्रवीण नहीं कि तत्काल ऑनलाइन क्लास हेतु विषयवस्तु और तकनीकी रूप से सक्षम हो जाये कि निर्धारित समय और प्रारूप के हिसाब से पाठ्यसामग्री उपलब्ध करवा सकें।उनका कहना है कि इसके लिए हमें विद्यालय ने तकनीकि रूप से प्रशिक्षित नहीं किया है।ऐसे में हमारी परेशानियों को भी गंभीरता से समझने की नितांत आवश्यकता है।
उपरोक्त विश्लेषण में हमने अध्यापकों के नज़रियों से ऑनलाइन शिक्षा के दौरान आ रही तकनीकि दिक्कतों को समझने का छोटा सा प्रयास किया हैं।यद्यपि परेशानियां इससे कहीं अधिक महत्तर और गंभीर हैं।
स्कूल प्रबंधन का अध्यापकों एवम अभिभावकों पर दबाव का पक्ष अगले अंक में.....।