कमीशन के बाद का खेल

 


 


आनन्द सिंह मनभावन,प्रतिनिधि


गोरखपुर। जबसे प्रशासन ने डोर टू डोर स्टेशनरी सामानों की आपूर्ति हेतु पोर्टल पर आर्डर करने की सुविधा दी है तबसे उपभोक्ताओं की शामत आ गई है।ऑनलाइन पोर्टल पर ऑर्डर करने पर उधर से जवाब आता है कि किसी विशेष स्कूल ने अपने किताब कापियों की आपूर्ति के लिए किसी खास डिस्ट्रीब्यूटर को जिम्मेदारी दे रखी है।ऐसे ही बिछिया स्थित एक स्कूल ने अपने यहाँ के किताब कापियों की आपूर्ति की जिम्मेदारी बक्शीपुर स्थित एक डिस्ट्रीब्यूटर को दे रखा है।एक अभिभावक ने उक्त डिस्ट्रीब्यूटर के यह संपर्क किया तो उधर से जवाब आया कि बच्चे का नाम,क्लास,उस स्कूल की शाखा,पता,और फोन नंबर लिखकर मैसेज कीजिये।अभिभावक ने वैसा ही किया।उधर से पूछा गया कि किताबें भेज दूँ?अभिभावक द्वारा पेमेंट का मोड पूछे जाने पर बताया गया कि सिर्फ कैश ऑन डिलीवरी की सुविधा है।अभिभावक ने कहा कि अमाउंट बता दीजिए मैं निकाल कर लाता हूँ।उधर से 4701 रुपये बताया गया जो कक्षा 5 के किताबों के सेट की कीमत है।अभिभावक ने बिल साथ मे भेजने की बात कही।कुछ देर बाद किताब कापियों का सेट लिए एक डिलीवरी बॉय आया जिसने किताबों की लिस्ट के सामने छपे मूल्य वाली प्रति को ही बिल बताते हुए कहा कि यही बिल है।उसने अपना 4701 रुपये का पेमेंट लिया और चला गया।पैक खोलकर किताबें मिलाने के क्रम में अभिभावक को संस्कृत मंजूषा नामक किताब का मूल्य किताब पर हुए प्रिंट,और बिल पर दिए गए मूल्य से अलग लगा ।डिस्ट्रीब्यूटर द्वारा प्रिंट किये बिल पर किताब का मूल्य 280/-रु. था जबकि किताब पर अंकित मूल्य 245/-रु. था।इस संदर्भ में डिस्ट्रीब्यूटर से बात करने पर उधर से जवाब आया कि दुकान खुलने पर वो पैसे वापस कर दिए जाएंगे।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि एक अभिभावक ने तो इस पर नज़र डाली तो उसको ये जवाब दिया गया।लेकिन ऐसे तमाम अभिभावकों का क्या होगा जिन्होंने किताबें ले रखी हैं और उनका ध्यान इस पर नही गया।एक किताब पर 25 रुपये की लूट है,और उसका कोई पक्का बिल भी नहीं दिया जा रहा,जबकि सर्वविदित है कि किताबों के वितरण के इस खेल में स्कूल और डिस्ट्रीब्यूटर के बीच न्यूनतम 40 से 45 प्रतिशत तक का कमीशन निश्चित होता है।इस तरह तो डिस्ट्रीब्यूटर ने हजारों का चूना अभिभावकों को लगा दिया है।सरकार और शासन-प्रशासन  द्वारा लगातार निर्देशित किये जाने के बावजूद निजी विद्यालयों की फीस और कापी क़िताबों से अंधाधुंध धनादोहन पर प्रभावी अंकुश नहीं लगाया जा रहा है।आये दिन अभिभावकों की ये पीड़ा उभर के आती है परंतु जिम्मेदारों के कानों पर जूं नहीं रेंगती।दबी जुबान में अभिभावक ये भी कहने से बाज नहीं आते की कमीशन के इस खेल में सभी 
मिले हुए हैं वरना इन पर प्रभावी कार्यवाही क्यों नहीं होती! बहरहाल एक तरफ लॉकडाउन और दूसरी तरफ  आर्थिक बदहाली के इस दौर में निम्नमध्यवर्गीय परिवारों पर ऐसे शोषण का बोझ असह्य है।