भगवान परशुराम का जीवन न्याय की स्थापना के लिये दृढ संकल्प का संदेश------ अंकित मिश्रा राष्ट्रवादी

 


गोरखपुर।


भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी का पृथ्वी पर अवतरण वैशाख मास की शुक्ल तृतीया तिथि को माता रेणुका के गर्भ से हुआ था. इस प्रकार अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम का जन्म माना जाता है. साथ ही यह मत भी है कि भगवान परशुराम का प्राकट्य काल 'प्रदोष काल' है.


पारंपरिक मान्यता के अनुसार 26 अप्रैल को ही अक्षय तृतीया और भगवान परशुराम जयंती दोनों एक साथ मनाई जाएगी।लॉकडाउन के कारण इस दिन घर पर ही भगवान परशुराम जी की पूजा व दीप प्रज्जवलन किया जाएगा।
भगवान परशुराम सात चिरंजीवियों अश्वत्थामा, राजा बलि, परशुराम, विभीषण, महर्षि व्यास, हनुमान, कृपाचार्य इनमें से एक हैं। भगवान विष्णु के छठे अवतार एवं ब्राह्म्ण जाति के कुल गुरु परशुराम जी हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन जो कुछ भी दान किया जाता है वह अक्षय रहता है यानि इस दिन किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता है। सतयुग का प्रारंभ अक्षय तृतीया से ही माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के परम भक्त परशुराम न्याय प्रिय हैं। 


पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ। यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को एक बालक का जन्म हुआ था। वह भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण करने के कारण परशुराम कहलाये।



सत्य के धारक भगवान परशुराम जी आप सभी के जीवन में साहस और सत्य बनाए रखें।भगवान परशुराम के जीवन से हमें न्याय की स्थापना के लिए जीवन पर्यन्त संकल्पित रहने की शिक्षा मिलती है।