क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट लागू किया जाना अपरिहार्य आवश्यकता: मधुसूदन
 

 

 मानवाधिकार दिवस के उपलक्ष में सिविल कोर्ट बार सभागार में मरीजों के कानूनी अधिकार विषय पर हुई संगोष्ठी 

 

गोरखपुर l पिछले कुछ वर्षों में सरकारी स्वास्थ्य के क्षेत्र में सेवाओं की गुणवत्ता में लगातार गिरावट आ रही है ऐसा नहीं है कि सरकारें कुछ नहीं कर रही है लेकिन जो कदम सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिए उठाए जा रहे हैं वे नाकाफी हैं जनसंख्या के सापेक्ष संसाधन का विकास ना हो पाना ही समस्या का मुख्य कारण है स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजी करण तेजी से बढ़ता दिख रहा है और सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था का ढांचा चरमरा रहा है निजी करण के चलते स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों के साथ आए दिन कई तरह की घटनाएं जैसे इलाज के नाम पर मनमानी अधिक वह नाजायज पैसों की मांग किया जाना मरीज को बंधक बना लेना आज घटनाएं सामान्य सी बात हो चुकी हैं इन्हीं सब बातों और घटनाओं को देखते हुए एक दशक से स्वास्थ्य केंद्र में मरीजों के कुछ अधिकार होने चाहिए और कैसे अधिकार मरीजों को मिल पाए इस पर एक अधिकार पत्र तैयार किया गया है जिसे जून 2019 में स्वास्थ्य और परिवार मंत्रालय ने स्वीकृत भी कर लिया है l

 

उक्त उद्गार अधिवक्ता कमल श्रीवास्तव ने सिविल कोर्ट बार सभागार में मरीजों के कानूनी अधिकार विषय पर हुई संगोष्ठी में संचालक के रूप में व्यक्त कियाl 

 

संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के सदस्य मधुसूदन त्रिपाठी ने कहा कि वर्तमान परिपेक्ष में क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट का लागू किया जाना अपरिहार्य हो सकता हैl कानूनी सहयोग दिला कर ही मरीजों के अधिकार सुनिश्चित किए जा सकते हैं किसी भी अस्पताल में मरीजों के लिए बनाए गए नियमों का पालन कराना न्यायपालिका का दायित्व है जिसके क्रियान्वयन में अधिवक्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण हैl 

 

संगोष्ठी को  विशिष्ट अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए  गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेस क्लब के नवनिर्वाचित मंत्री  मनोज यादव ने कहा कि केंद्रीकृत पूंजीवादी व्यवस्था के दौर में  चिकित्सा सेवा  धन उपार्जन की  एक बड़ी इंडस्ट्री के रूप में विकसित हो चुका है  ऐसे में  मरीजों को अपने कानूनी अधिकार और सामान्य  चिकित्सकीय  समझ का  विकास करना अपरिहार्य हो गया है l मरीजों का शोषण तभी रुक पाएगा जब हम जागरूक  हो जाएंगे l

 

वरिष्ठ अधिवक्ता और ओजस्वी वक्ता अशोक नारायण धर दुबे ने बताया कि उच्चतम न्यायालय में स्वास्थ्य सेवाओं कि सुनिश्चित और अनुपालन मानक अनुरूप किए जाने को लेकर एक याचिका दायर की गई थी जिसमें उच्चतम न्यायालय ने दिशा निर्देश निर्गत किया कि संचित से के चिकित्सा व्यवस्था पाने का अधिकार देश के प्रत्येक नागरिक को प्रदत्त है और उसका अनुपालन किया जाना आवश्यक है साथ ही उन्होंने कहा कि क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट लागू हो जाने से उच्चतम न्यायालय की मंशा के अनुरूप और मानवी न्याय की संकल्पना के अनुपालन में मानक गुणवत्तापूर्ण और समुचित चिकित्सा व्यवस्था नागरिकों को उपलब्ध करवाए जाना संभव हो सकेगा lबार एसोसिएशन सिविल कोर्ट के मंत्री अजय शुक्ल ने संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहा कि आज चिकित्सा सेवा नहीं बल्कि धन उपार्जन का एक बड़ा माध्यम बन चुका है ऐसे में मरीजों को अपने कानूनी अधिकार से सुपर चित होना आवश्यक हो गया हैlसाथ ही उन्होंने कहा कि इस दिशा में अधिवक्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण और निर्णायक हो सकती हैl

 

प्रगतिशील अधिवक्ता समिति से जुड़े हुए श्याम मिलन सुभाष पाल विनोद यादव अजय आनंद मुन्ना प्रमोद धर दुबे रौनक श्रीवास्तव अनिल पासवान मधुसूदन त्रिपाठी यति कुमार वर्मा नफीस अख्तर  बिहार त्रिपाठी सत्येंद्र श्रीवास्तव और ध्रुव नारायण शर्मा सहित बड़ी संख्या में अधिवक्ताओं ने कहा कि हम सभी को उत्तर प्रदेश क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट 2010 को लागू किए जाने को लेकर मुख्यमंत्री से मांग किया जाना चाहिएl

 प्रखर वक्ता श्याम मिलन ने कहा कि पहले पर्ची बाद में पैसा मातृत्व स्वास्थ्य सेवाओं को सुनिश्चित करना आवश्यक है संगोष्ठी का संचालन कर रहे अधिवक्ता कमल श्रीवास्तव और प्रमोद धर दुबे ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ संगोष्ठी का समापन यह कहते हुए किया कि मरीजों के अधिकार सुनिश्चित कराए जाने के लिए अधिवक्ता साथियों का एक फोरम बनाया जाएगा जिसके माध्यम से मरीजों को निशुल्क कानूनी मदद दिलाने के लिए अधिवक्ता फोरम तत्पर रहेगाl

 

 लखनऊ से आई हुई महिला मंच की मनमीत ने बताया कि आज भी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर मरीजों से अवैध धनादोहन किया जाता है प्रसव के नाम पर 500 से ₹1000 लेकर प्रसव सेवाएं दी जाती हैं गरीब आदमी  विवस  है कार्यक्रम में 33 महिलाओं सहित कुल 175 जागरूक लोगों ने सहभाग किया