देर रात्रि को निकला मेहंदी, अलम व जुलजनाह का मातमी जुलूस

 


कर्बला जुल्म, भ्रष्टाचार और आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक आंदोलन है : मेहंदी



  • गोरखपुर । मेहंदी अलम व जुलजनाह का मातमी जुलूस असकरगंज स्थित इमामबाड़ा मोहम्मद जहीर साहब मरहूम से अपनी पुरानी रवायतों के साथ निकला। छठवीं मुहर्रम को देर रात निकलने वाले इस मातमी जुलूस से पहले मोहम्मद मेंहदी एडवोकेट के अस्करगंज स्थित आवास पर एक मजलिस को मोहम्मद मेहदी ने ख़िताब किया। उन्होंने बताया कि इमाम हुसैन के बड़े भाई इमाम हसन के पुत्र कासिम की याद में मेंहदी सजाई जाती है। हज़रत कासिम की उम्र 17 साल थी जब उन्हें कर्बला के मैदान में तीन दिन का भूखा व प्यासा शहीद किया गया और यज़ीदी फौज ने हज़रत कासिम की लाश पर घोड़े दौड़ाये । उन्होंने कहा कि जुलूस में शामिल यह अलम इमाम हुसैन के छोटे से लश्कर का निशान है जबकि जुलजनाह इमाम हुसैन के घोड़े का नाम था । मेहदी अलम और जुलजनाह की यह शबीह यानि नक़ल हमें कर्बला की याद दिलाते हैं। इमाम हुसैन ने जुल्म के खिलाफ जो आवाज़ बलन्द किया था वो आज भी फ़िज़ा में गूँज रही है । कर्बला हर दौर के यज़ीद के लिए एक सबक है, कर्बला जुल्म, भ्रष्टाचार और आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक आंदोलन है। कर्बला बातिल पर हक़ की जीत का नाम है।
    इससे पहले मिर्ज़ा अली और सिब्ते हसन ने मर्सिया से मजलिस का आगाज़ किया। जुलूस असकरगंज से कोतवाली, नखास चौक से रेती चौक होते हुए इमामबाड़ा आगा साहेबान पर समाप्त हुआ।
    जुलूस की अगुवानी रफ़त हुसैन, अली ज़हीर मेंहदी, एजाज़ रिज़वी एडवोकेट ने की। जुलूस के समापन पर मोहम्मद मेहदी एडवोकेट ने शासन प्रशासन के साथ ही जुलूस में शामिल लोगों का धन्यवाद किया।