बेमिसाल है गुरु शिष्य का यह रिश्ता

 



  • गोरखपुर। 15 सितंबर 2014 दिन मंगलवार। स्थान गोरखपुर। ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के बारे में एमपी शिक्षा परिषद की ओर से हुए श्रद्धांजलि समारोह में भावुक होते हुए गोरक्षपीठ के नए पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने जो दो संस्मरण सुनाए वे यूं हैं।  
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    अब तुम मेरा भार उठा सकते हो!
    'एक बार रूटीन जांच के बाद दिल्ली में बड़े महाराज एक भक्त के घर गए। वहां वे कुछ देर के लिए बेहोश हो गए। इस दौरान मैंने उनको उठाकर कुर्सी पर बिठा दिया। होश आने पर पूछा मेरा वजन कितना है। मैंने बताया, 70-71 किग्रा। बेहद आत्मीय आवाज में बोले, लगता है कि अब तुम मेरा भार उठा सकते हो। 
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    अब जो पूछना है इसी से पूछो
     'मेदांता अस्पताल में याददाश्त परीक्षण के दौरान डाक्टरों ने पूछा कि आप किस पर सर्वाधिक भरोसा करते हैं। उनकी नजरें मुझ पर टिक गईं। चिकित्सकों से कहे अब जो पूछना हो इसी से पूछो।
    ये संस्मरण अगर एक गुरू का अपने शिष्य पर भरोसे की हद है तो शिष्य के लिए उससे बढ़कर चुनौती और फर्ज। उनके  सपनों का अपना बनाने और उसे आगे ले जाने की। योगी जी के अनुसार, यदा-कदा हममें कुछ मुुद्दों पर मतभेद भी होते थे। वे बुलाकर पूरी बात सुनते थे, अंतिम निर्णय उनका ही होता था। गुरुदेव जिन संस्थाओं के अध्यक्ष थे, उनके कामों में मैं दखल नहीं देता था। इधर दो वर्षों से सेहत अधिक खराब होने  पर मैंने उनसे कहा कि किसी कागज पर दस्तखत करने के पूर्व संबंधित से यह जरूर पूछें कि मैंने उसे देखा है कि नहीं? इसके बाद संस्था के लोगों से भी मैंने कहा कि उनके हस्ताक्षर के पूर्व के हर कागज मुझे जरूर दिखाएं। यह बात उनको हरदम याद रही।  इसके बाद जो भी कागज दस्तखत के लिए जाता था, ले जाने वाले से जरूर पूछते थे छोटे महराज ने देख लिया। संतुष्ट हैं? हामी भरने के बाद ही उस पर हस्ताक्षर करते थे। बेमिशाल है, गुरु शिष्य का यह रिश्ता। इस रिश्ते और बड़े महाराज की पुण्यतिथि पर कोटिशः नमन।


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